सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के विवादित फैसले पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा – जज का फैसला असंवेदनशील और अमानवीय
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के विवादित फैसले पर रोक लगा दी है। हाई कोर्ट ने 17 मार्च को अपने आदेश में कहा था कि ‘पीड़िता के निजी अंगों को पकड़ना और पायजामे का नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म या दुष्कर्म की कोशिश के दायरे में नहीं आता।’ इस फैसले पर न्यायविदों, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी।
‘वी द वुमेन ऑफ इंडिया’ नामक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती देते हुए अर्जी दाखिल की थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए रोक लगाने का फैसला किया।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बताया असंवेदनशील
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने कहा, “यह फैसला न्यायिक संवेदनशीलता की कमी दर्शाता है और इसे रोका जाना आवश्यक है।” जस्टिस गवई ने कहा, “हम आम तौर पर इस स्तर पर किसी आदेश पर रोक लगाने से बचते हैं, लेकिन इस मामले में की गई टिप्पणियां कानूनी सिद्धांतों से परे हैं, इसलिए इस पर रोक लगाना जरूरी है।”
क्या था मामला?
यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले का है, जहां 2021 में एक नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म की कोशिश की गई थी। हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असमर्थ रहा कि यह कृत्य दुष्कर्म का प्रयास था। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि “दुष्कर्म की कोशिश और दुष्कर्म की तैयारी में अंतर है, और अभियोजन पक्ष को इसे साबित करना होगा।”
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जस्टिस गवई ने कहा, “यह मामला नाबालिग बच्ची से जुड़ा है, जो बेहद गंभीर है। मुझे खेद है कि मुझे फैसले देने वाले जज के खिलाफ कठोर शब्दों का प्रयोग करना पड़ रहा है।”
सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी हाई कोर्ट के फैसले पर असहमति जताते हुए कहा कि यह फैसला संवेदनहीनता को दर्शाता है। उन्होंने कहा, “हाई कोर्ट के इस फैसले से गंभीर अपराधों को लेकर न्याय प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।” उन्होंने सुझाव दिया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इस मामले में उचित कदम उठाने चाहिए।
सरकार से जवाब तलब
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर इस मामले पर जवाब मांगा है। पीड़िता की मां द्वारा दायर याचिका को भी इस मामले के साथ जोड़ दिया गया है।
यह मामला अब कानूनी और सामाजिक स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है और देशभर में महिलाओं के अधिकारों को लेकर न्याय प्रणाली की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।